बदलते परिवेश में भी प्रासंगिक है आदि गुरू वेद व्यास की शिक्षा के मायने
सनातन मान्यता के अनुरुप परंपरा के साथ आधुनिक शिक्षा की उठी मांग
रिपोर्ट अमित यादव मोनू
सहारनपुर:गुरू पूर्णिमा सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है।आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरू पूजा का विधान है शास्त्रो के अनुसार गुरू पूर्णिमा का गहरा अर्थ और इतिहास है। महाभारत के रचयिता व संस्कृत के महान विद्वान वेद व्यास का जन्म भी आषाढ़ मास की पूर्णिमा को हुआ था। उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है जो गुरू पूर्णिमा के प्राचीन होने का प्रमाण देता है कि गुरू पूर्णिमा का विधान महाभारत काल मे भी प्रचालित था।महर्षि वेद व्यास को महागुरू और आदिगुरू के नाम से भी जाना जाता है क्योकि मान्यता अनुसार महर्षि वेद व्यास तीनो कालों के ज्ञाता थे।
बात करे वर्तमान की तो गुरू -शिष्य के रिश्तो में ना तो अब अर्पण भावना रही ना तर्पण की ।व्यावहारिकता के कारण धन को अब अधिक महत्व दिया जाने लगा है कभी गुरू शिष्य के रिश्ते पिता पुत्र के सम्मान हुआ करते थे। इतिहास मे ऐसे बहुत से उदाहरण है जहा गुरू ने शिक्षा मे शिष्य को अपना सर्वस्व दे दिया।गुरूद्रोण ने अर्जुन को अपने पुत्र से आधिक माना हो या आचार्य चाणक्य ने चन्द्रगुप्त के हाथों से अखण्ड भारत की नीव रंखवाई हो जो आज भी समाज को मजबूती से सामाजिक,मौलिकता और नैतिकता केलिए प्रेरित करते आ रहे है ।भारत ही नही संपूर्ण संसार में जब भी मानव को सीखने सिखाने जब भी आवश्यकता पड़ी है तब तब उसे गुरू की आवश्यकता पडी। जिस कारण हमारी सनातनी परम्परा में गुरू को सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है ।कहा जाता है गुरु के बिना किसी लक्ष्य पर पहुंच पाना सम्भव नहीं है. गुरु ही आपको जीवन जीने का सलीका और जीवन में आने वाली कठिनाइयों से लड़ने के लिए तैयार करता है शिष्य का गुरु के प्रति सम्पूर्ण समर्पण होता था वहीं गुरु का स्नेह शिष्य के प्रति निश्वार्थ होता था।शायद इन्हीं वजहों से कुछ कहानियां ऐतिहासिक हो चुकी है हमारे भारत वर्ष में आधुनिकता के इस दौर में पुनःपारम्परिक शिक्षा की मांग को जोर दिया जा रहे ताकि हमारे सभ्य समाज मे गुरू शिष्य के रिश्ते भारत के स्वर्णिम विकास पुनःअपना योगदान दे सके।अतः हमें आवश्यकता है कि आत्मीय सम्मान को शीर्ष के रख शिक्षा के मूल उद्देश्यों को जान शिक्षक के साथ अपनी खोई प्रतिष्ठा को पाने का प्रयास करे।

0 टिप्पणियाँ