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मजालिस में करबला के शहीदं हज़रत मुस्लिम के दो छोटे व कमसीन बच्चे शहीद हज़रत औन व शहीद हज़रत मुहम्मद की शाहदत को किया ब्यान

मजालिस में करबला के शहीदं हज़रत मुस्लिम के दो छोटे व कमसीन बच्चे शहीद हज़रत औन व शहीद हज़रत मुहम्मद की शाहदत को किया ब्यान

रिपोर्ट अमान उल्ला खान

सहारनपुर-मोहर्रम की तीन तारीख रात में नगर के विभिन्न इमामबाड़ो में हुई मजालिस मे मुस्लिम धार्मिक विद्वानो ने करबला के शहीदं हज़रत मुस्लिम के दो छोटे व कमसीन बच्चे शहीद हज़रत औन व शहीद हज़रत मुहम्मद की शाहदत का फलसफा ब्यान किया गया।    

मजालिस मे सब से पहले मरसिए खानी की गयी मरसिया पढने वालो मे आसिफ अल्वी, सलीस हैदर काजमी, हमज़ा जैदी सलीम आब्दी, खुवाजा रईस अब्बास आदि रहे।पहली मजलिस इमामबाड़ा सामानियान मौहल्ला कायस्थान सहारनपुर में हुई जिसको हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना डाक्टर सैय्यद फतेह मुहम्मद ज़ैदी साहब ने खिताब फरमाया।दूसरी मजलिस बडा इमामबाड़ा जाफर नवाज़ में हुई जिसको हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना मिर्ज़ा जावेद साहब ने खिताब फरमाया। तीसरी मजलिस छोटा इमामबाड़ा अन्सारियान में हुई जिसको हुज्जत-उल इस्लाम आली जनाब मौलाना सैय्यद मीसम नकवी साहब ने खिताब फरमाया।चौथी मजलिस पुराना कलसिया रोड़, सादात कालोनी स्थित मरकज़ इमाम जाफर ए सादिक अलैहिस्सलाम में मौलाना वासिफ काज़मी ने खिताब फरमाया।,
मजालिस मे धार्मिक विद्धानो ने बताया गया कि यज़ीद हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से बैअत (समर्थन) लेना चाहता था। यजीद चाहता था कि रसूल अकरम स0अ0व0स0 का नवासा मेरी बैअत (समर्थन)  कर देगा तो मे तमाम मुस्लमानो का खलीफा (सरदार) बनकर मुसलमानो मे वह सारे काम जायज़ कर दूगा जो इस्लाम मे नाजायज़ है और उन बातो पर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मोहर लग जाएगी और तमाम मुसलमान उस पर अमल करने लगेगे और इस तरह इसलाम की शक्ल बदल जाएगी और उसकी हकूमत भी कायम रहेगी यही उसका असली मकसद था यज़ीद की हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस लिए बैअत नही की कि उनको नाना रसूले खुदा स0अ0व0स0 के दीन (धर्म) की हिफाज़त करनी थी और इसके लिए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी कुरबानी 10 मोहर्रम को पेश कर रसूले खुदा स0अ0व0अ0व0स0 के दीन को बचा लिया नही तो इसलाम मे शराब, ज़िनाखोरी (बलात्कार), सूदखोरी, व सारे नाजायज़ काम जायज़ होते इस लिए हमे हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत को कभी भुलना नही चाहिए। हम अज़ादारी व हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का ग़म रस्मो रिवाज की वजह से नही मनाते यह एक तहरीक है। जो मकसदे हुसैनियत को कामयाब बनाने एव करबला के शहीदो को पुरसा देने के लिए करते है।हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का काफला दो मोहर्रम को जब करबला पहुचा तो आपने सब से पहले करबला की ज़मीन को बनी असद से खरीदा और मर्दो से वसीयत की जब हम लोग शहीद हो जाए तो हमारी कब्रगाह यही बनाना और मेरे ज़ायरिन को करबला मे 3 रोज़ तक मेहमान बना कर रखना। फिर वहा की औरतो से वसीयत की थी कि यदि हमे दफन करने मर्द न आ सके तो आप हमे दफन करना। उसके बाद बच्चो से वसीयत की थी कि यदि मर्द या औरते हमे दफन न करने आ सके तो तुम हमे दफन करना।मजालिस के आखिर मे नौहा खानी की गयी जिसमे अन्जुमने अकबरिया व अन्जुमने इमामिया व अन्जुमने सोगवारे अकबरिया ने नौहा खानी व सीनाज़नी की।  

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