मजलिस मे हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम की शाहदत पर रोशनी डाली गयी
हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम जो हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के बेटे थे उन्ही की याद मे (शौक सभा) मजलिस का आयोजन किया गया मजलिस मे हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम की शहादत पर फलसफा ब्यान करते हुए बताया गया कि शहादत के समय हज़रत कासिम की उम्र 13 साल थी। हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम दूसरे इमाम हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पुत्र व हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के भतीजे थे। हज़रत कासिम से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बहुत प्यार करते थे जब कर्बला में शहादत का वक्त आया तो हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से शहादत की इजाज़त लेनी चाही तो हज़रत इमाम हुसैन अलैहि0 ने अपने भाई की इकलौती निशानी होने के कारण से शहादत की इजाजत नही दी। हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम ने अपने बाजू पर बांधा अपने वालिद हज़रत इमाम हसन अलैहि0 का ताबीज़ अपने चचा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को दिखाया जिसमें हजरत इमाम हसन अलैहि0 ने अपनी जिन्दगी में शहादत की इजाजत लिख कर अपने बेटे के बाजू पर बांध दी थी। हजरत इमाम हसन अलैहि0 को पहले ही पता था कि उनके छोटे भाई इमाम हुसैन अलैहि0 को कर्बला में शहादत की जरूरत होगी। अपने बडे भाई की वसीयत को देखते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने हजरत कासिम अलैहिस्सलाम को शहादत देने की इजाजत दे दी हज़रत कासिम बडी बहादूरी से जंग लडें फौजे यजीद ने हजरत कासिम को चारो तरफ से घेर कर शहीद कर दिया। हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम की लाश पर घोडे दौडये गये।
इमाम बारगाह सामानियान में मजलिस के बाद हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम की याद मे हर साल की तरह इस साल भी जुलूसे अलम निकाला गया। जुलूस मौहल्ला कायस्थान स्थित इमाम बारगाह सामानियान से शुरू होकर पुरानी जामा मस्जिद, गौरी शंकर बाजार, चूडी बाज़ार, मौहल्ला संज्ञान, बडतला अन्सारियान, से होता हुआ छोटी इमाम बारगाह अन्सारियान पहुचकर सम्पन्न हुआ।जुलूस मे अकीदत मंदो ने हाथ से (सीनाज़नी) अपने शरीर पर मातम किया, हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम का गम उनके दिलो दिमाग पर छाया हुआ था सभी ग़मजदा लोगो ने काले कपडे पहन रखे थे तथा नंगे पैर,गरेबान चाक, मातम करते (छाती पीटते) हुए चल रहे थे। सभी अकीदत मंद या हुसैन, या अली, या अब्बास, हाय सकीना हाय प्यास की आवाजे़ बुलंद कर रहे थे। जुलूस मे शबीह ताबूत हज़रत कासिम अलैहिस्सलाम, जु़लजना ,काले निशान, ताजि़या,व छोटे छोटे अलम साथ चल रहे थे। जुलूस मे अन्जुमने इमामिया, व अन्जुमने अकबरिया व अन्जुमने सोगवारे अकबरिया मातम व सीनाज़नी करती हुई चल रही थी अन्जुमनो मे नौहा खानी सलीस हैदर काज़मी,, अनवर अब्बास जै़दी, गयास जै़दी, मिर्जा मेहरबान,मिर्जा अयाज़,मिर्जा नदीम, तौसिक मैहदी, शहबाज काज़मी अली मैहदी, अदनान काज़मी, शुजा काज़मी, गुडडु अबुतुराब जैदी, तालिब जैदी, सन्नी आब्दी, समीर आब्दी, आदि कर रहे थे। जुलूस का संचालन ज़िया अब्बास ज़ैदी मुन्तजिम मुतवल्ली इमामबाड़ा सामानियान व अयाज़ जै़दी ने किया।
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नौहे पढ़ रहे थेः-
नन्ही सी कब्र खोद के असग़र को गाड के।
शब्बीर उठ खडे हुए दामन को झाड के।।
करबला तक इसलिए मेरी हसी खामोश थी।
कि जु़ल्म जब रोने लगे तब मुस्कुराना चाहिये।।
करबला करबला ए करबला पाइन्दाबाद।
हम रहे या ना रहे बाकी रहे तेरी याद।
गुलशने इस्लाम मे रंग भर गया खूने हुसैन।
सुरखुरू दीने नबी को कर गया खूने हुसैन।
अब कभी सर को उठा न पायेगे अहले फसाद।


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