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बिना स्वाध्याय के सामर्थ्य विकसित नहीं हो सकता- आचार्य बालकृष्ण

बिना स्वाध्याय के सामर्थ्य विकसित नहीं हो सकता- आचार्य बालकृष्ण

खेल भावना का मौलिक सिद्धांत अपने प्रतिपक्ष खिलाड़ियों का सम्मान करना है-एन.पी. सिंह

रिपोर्ट श्रवण झा

हरिद्वार- पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय (पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान) में चार दिवसीय क्रीड़ा महोत्सव ओजस् के समापन अवसर पर विद्यार्थियों को पतंजलि योगपीठ के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण का आशीर्वाद उद्बोधन प्राप्त हुआ।

आचार्य जी ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कहा कि देह का निर्माण माता के गर्भ में होता है जबकि विचारों का निर्माण गुरुजनों के सान्निध्य में होता है,इसीलिए गुरु के सान्निध्य को द्विज कहा जाता है। अभी आपका आगम काल चल रहा है अर्थात गुरुजनों के द्वारा आपको दीक्षित किया जा रहा है,अभी दूसरा चरण स्वाध्याय काल शेष है।उन्होंने कहा कि बिना स्वाध्याय के सामर्थ्य विकसित नहीं हो सकता।अध्ययन के लिए जो पाठ्यक्रम बनाया गया है वह तो आपको पढ़ना ही है,उसके साथ-साथ विद्या के सामर्थ्य, प्रवीणता,दक्षता और अत्यंत योग्यता के लिए निरंतर स्वाध्याय अत्यंत आवश्यकता है।जब आगम और स्वाध्याय अच्छा होगा तो वह आपकी वाणी से परिलक्षित भी होगा।आप जिस ओर जा रहे हैं वह आपके जीवन का अतिरिक्त सामर्थ्य का, वैदुष्य का उदाहरण बनने वाला है,उसमें कभी आलस्य-प्रमाद नहीं आने देना।खेल प्रतियोगिता के विषय में आचार्य जी ने कहा कि खेल किसी भी आयोजन की आत्मा होते हैं और युवा वर्ग को अनुशासन तथा जीवन की दिशा देने का कार्य करते हैं।भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्षएन.पी.सिंह ने कहा कि प्रतियोगिता का अर्थ प्रतिद्वन्द्वता या प्रतिस्पर्धा नहीं है,प्रतियोगिता का अर्थ है कि यदि कोई एक व्यक्ति या पक्ष कोई योगदान कर रहा है तो उससे बेहतर प्रति योगदान करने वाला कौन है,उत्कृष्टता के आधार पर कोटि क्रम या वरीयता क्रम निर्धारित किया जा सकता है जिसमें कोई विजय,पराजय या उन्माद नहीं होता।उन्होंने कहा कि खेल हमें अपने प्रतिपक्ष खिलाड़ियों का सम्मान करना भी सिखाते हैं,यही खेल भावना का मौलिक सिद्धांत भी है।इस अवसर पर पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.गिरिश के.जे.,स्पोर्ट्स कमेटी प्रमुख डॉ.सौरभ शर्मा,साध्वी देवसुमना,साध्वी देवस्वस्ति,साध्वी देवविभा सहित महाविद्यालय के समस्त शिक्षकगण व विद्यार्थिगण उपस्थित रहे।

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