श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी के प्रकाश पर्व के अवसर पर सहारनपुर उद्योग व्यापार प्रतिनिधिमंडल ने किया प्रसाद वितरण
महानगर अध्यक्ष विवेक मनोचा व महामंत्री स. सुरेन्द्र मोहन सिंह चावला ने कहा कि गुरू गोबिन्द सिंह ने अन्याय, अत्याचार और पापों को खत्म करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए मुगलों के साथ 14 युद्ध लड़े। धर्म की रक्षा के लिए समस्त परिवार का बलिदान किया, जिसके लिए उन्हें 'सरबंसदानी' (पूरे परिवार का दानी ) भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त जनसाधारण में वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले, आदि कई नाम, उपनाम व उपाधियों से भी जाने जाते हैं।उन्होंने बताया कि श्री गुरु गोबिन्द सिंह (जन्म पौषशुक्ल सप्तमी संवत् 1723 विक्रमी तदनुसार 22 दिसम्बर 1666 - 7 अक्टूबर 1708 ) सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। गुरू तेग बहादुर जी के बलिदान के उपरान्त 11 नवम्बर सन् 1675 को 10 वें गुरू बने। गुरू गोबिन्द सिंह एक महान योद्धा, चिन्तक, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता थे। सन् 1699 में बैसाखी के दिन उन्होंने खालसा पंथ (पन्थ) की स्थापना की जो सिखों के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण दिन माना जाता है । उन्होंने सदा प्रेम, सदाचार और भाईचारे का सन्देश दिया। किसी ने गुरुजी का अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे परास्त कर दिया। गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए। वे अपनी वाणी में उपदेश देते हैं भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन। वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव वाले कर्मयोगी थे। उनकी वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर भरी थी। उनके जीवन का प्रथम दर्शन ही था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है और सत्य की सदैव विजय होती है। प्रसाद वितरण कार्यक्रम में महानगर अध्यक्ष विवेक मनोचा, महामंत्री स. सुरेन्द्र मोहन सिंह चावला, यूबोन परिवार के हरप्रीत सिंह सचदेवा, सुधीर मिगलानी,अशोक छाबडा, दीपक खेडा, अनुभव शर्मा, हरप्रीत सचदेवा, लक्की अरोरा, कमरूजमा, हरमीत सचदेवा, सार्थक बाठला, रजत चावला, पुनीत बब्बर, गुलशन अनेजा, गगनदीप सिंह, मानस सेतिया, राजन गांधी आदि भारी संख्या में व्यापारी प्रतिनिधि शामिल रहे ।
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