"दिव्य शक्ति अखाड़ा” को मिले तीन नए महामंड
पंचतीर्थी आश्रम के मुख्य महंत रामदेव जी महाराज बने अखिल भारतीय संत समिति के उपाध्यक्ष
रिपोर्ट-अमान उल्ला खान
थानाभवन- अवधूत शिरोमणि बाबा हीरादास जी महाराज की और स्वामी हरिदेव जी महाराज की पुण्य स्मृति के अवसर पर पंचतीर्थी आश्रम थानाभवन मे एक महान यज्ञ और सन्त सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमे सम्पूर्ण भारतवर्ष से 53 संतों, महंतों, महामंडलेश्वरों और पीठथीश्वरों ने सहभागिता की।कार्यक्रम का शुभारम्भ मुख्य महंत स्वामी रामदेवजी, आचार्य महामंडलेश्वर सन्तश्री कमल किशोरजी, वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी शिव प्रेमानन्द जी, महामंडलेश्वर स्वामी दयानन्द जी सरस्वती, स्वामी राम बिहारी दासजी महंत स्वामी विवेकानन्द जी, महंत स्वामी हंसदेव जी, महंत स्वामी रामनरेशदास जी, कथाव्यास स्वामी त्रिपुरारि जी, महंत स्वामी अरुण दास जी और महामंडलेश्वर सुरेन्द्र शर्मा जी, सुप्रसिद्ध संगीतकार पंडित दिनेश पाठक ने संयुक्त रूप से अवधूत शिरोमणि बाबा हीरादास जी महाराज की और स्वामी हरिदेव जी महाराज के चित्र के समक्ष समक्ष दीप प्रज्वलित कर किया।
मुख्य महंत स्वामी रामदेवजी ने उपस्थित जनसमूह को गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि गुरु एक ऐसा माध्यम हैं जो अज्ञान के अंधकार से मनुष्य को ज्ञान, सरलता, प्रेम और श्रद्धा के प्रकाश से आलोकित मार्ग पर ले जाता है। आत्मा को परमात्मा से मिलाता है। दुखों को सुखों में बादल देता है। जिसने पूर्ण विश्वास के साथ गुरुय का हाथ थाम लिया वह इस पृथ्वी का सबसे सुखी प्राणी बनकर यहीं स्वर्ग का सुख भोगता है।दिव्य शक्ति अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर सन्तश्री कमल किशोर ने धर्म और राष्ट्र की एकता की •बात करते हुए कहा कि यदि देश बचेगा तो ही धर्म बचेगा, और धर्म बचेगा तो ही राष्ट्र बचेगा। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। धर्म, सत्ता और राजनीति को श्रेष्ठ मार्ग दिखाने का कार्य करता है। धर्म की रक्षा करने के लिए अखाड़े कार्य करते हैं और दिव्य शक्ति अखाड़ा पूरे भारतवर्ष मे सद्भाव समभाव को स्थापित करने के लिए कार्यरत है। वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी शिव प्रेमानन्द जी ने जीवन की कटु सच्चाइयों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि धर्म और अधर्म के युद्ध मे हमे एक को चुनना ही पड़ता है। उन्होने स्वर्गीय प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के साथ बिताए हुए संस्मरण को याद करते हुए कहा कि धर्म के पक्ष में सही समय पर निर्णय न लेने के कारण सरकार गिर गई थी। निर्भीक सन्त सदैव धर्म के पक्ष मे होते हैं, उन्हें किसी •सी भी प्रकार के प्रलोभन या आतंक का भय नहीं होता क्योंकि उनका जीवन परमात्मा को समर्पित होता है।सन्त सम्मेलन में कोलकाता से पधारे श्री प्रफुल्ल रंजन हलदरजी, कोटा राजस्थान से पंडित आचार्य जगदीश वेदी जी और भिलाई छतीसगढ़ से आचार्य सुनील शुक्ल जी को आचार्य महामंडलेश्वर सन्तश्री कमल किशोर द्वारा त्रिशूल, महामंडलेश्वर सुरेन्द्र शर्मा द्वारा प्रमाण-पत्र, सुरेश निझावन द्वारा अंगवस्त्र, शाल, सुधीर मिश्रा पूनम द्वारा स्मृति चिन्ह, चन्दर पाराशर द्वारा अग्निपुराण एवं दुर्गा सप्तशती भेंटकर सम्मानित और महामंडलेश्वर निर्मला सोनी तथा महामंडलेश्वर रेखा बाँका महाराज ने पुष्प वर्षा कर दिव्य शक्ति अखाड़ा के महामंडलेश्वर पद पर सुशोभित किया गया।कार्यक्रम का सुघड़ एवं सफल संचालन कु. मनीषा धीमान ने किया। सम्मेलन की सफलता में गुरु माँ अनीता, विवेक जाधव, दीपांकर, अमित, श्रवण पांडे, मीनाक्षी शर्मा, के. के. स्वामी, रामदास जी महाराज, जयनारायण, राधेश्याम वेदी, प्रवीण वेदी, रामनारायण का उल्लेखनीय योगदान रहा।
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