डॉ. अरुण का निधन अपभ्रंश भाषा और जैन साहित्य की बड़ी क्षति: वीरेन्द्र आज़म
साहित्यकार डॉ अरुण के निधन पर सहारनपुर के साहित्यकारों ने शोक जताया
रिपोर्ट अमान उल्ला खान
सहारनपुर-साहित्य अकादमी के पूर्व सदस्य तथा प्रख्यात साहित्यकार व शिक्षाविद् डॉ.योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण के निधन पर सहारनपुर के साहित्यकारों ने शोक व्यक्त करते हुए उनके निधन को हिंदी साहित्य की अपूर्णीय क्षति बताया है। डॉ. अरुण गत एक पखवाडे़ से पक्षाघात से पीड़ित थे। रुड़की के एक अस्पताल में उन्होंने शुक्रवार की शाम अंतिम सांस ली।
हिन्दी साहित्य भारती के प्रांतीय उपाध्यक्ष साहित्यकार डॉ.वीरेन्द्र आज़म ने डॉ.अरुण को भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ. अरुण, जैन रामायण के मर्मज्ञ और अपभ्रंश भाषा साहित्य के उद्भट विद्वान थे। शिक्षाविद् के रुप में भी उन्होंने यश अर्जित किया। उनका जाना हिन्दी साहित्य, अपभ्रंश भाषा साहित्य और जैन साहित्य की बड़ी क्षति है। विभावरी साहित्यिक संस्था के अध्यक्ष डॉ. विजेंद्रपाल शर्मा ने कहा कि उन्होंने सदैव अभिभावक की तरह प्रेम किया और शहर के सभी आयोजनों में सक्रिय भागेदारी कर इस शहर को अपना आशीर्वाद दिया। उनका जाना साहित्य की बड़ी क्षति है। समन्वय के सचिव डॉ. आर पी सारस्वत ने कहा कि डॉ. अरुण ने अपनी साहित्य साधना और समाजिक सरोकारों से भारत वर्ष का नाम ऊंचा किया। हिंदी साहित्य में उनकी गीत साधना भी स्तुत्य है। कवि विनोद भृंग ने कहा कि डॉ. अरुण एक अच्छे गीतकार और दोहाकार भी थे। हर दिन भोर की किरणों के साथ हजारों लोगों के मोबाइल पर उनका एक नया और उत्प्रेरक दोहा आ जाता था।इसके अतिरिक्त समन्वय के अध्यक्ष डॉ. ओ पी गौड, डॉ. विपिन गिरी, डॉ.सुमेधा नीरज, कवि-लेखक राजेंद्र शर्मा, कवि नरेंद्र मस्ताना, वीरेश त्यागी, डॉ. अनीता, प्रशांत राजन व पीएन मधुकर आदि ने भी डॉ. अरुण को श्रद्धासुमन अर्पित किये हैं।
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