शब-ए-बराअत: यानि : पापों और गुनाहों से आज़ादी की रात
सहारनपुर-शब-ए-बराअत रात का महत्व बतलाने के लिए और लोगों को जागरूक करने के लिए इस्लामी धर्मगुरू और उलेमा-ए-किराम जगह-जगह पर छोटे-छोटे जलसे और प्रोग्राम करते हैं जैसे: खाताखेड़ी, नूर बस्ती, छीपियान, साबरी बाग़, आज़ाद काॅलोनी, कमेला काॅलोनी, शाहमदार आदि मुस्लिम मुहल्लों मे इस तरह के प्रोग्राम होते चले आ रहे हैं, जो इशा की नमाज़ के बाद शुरू होकर आमतौर पर 11:30, 12:00 बजे तक चलते हैं। जैसा कि हमारे असलाफ और बुज़ुर्गों से यह परंपरा चलती आ रही है ताकि लोग सही बातों को जानकर उन पर अमल करें और गलत बातों से बचें
शब-ए-बराअत पर प्रकाश डालने के लिए हर साल की तरह मौहल्ला छीपियान मे इशा की नमाज़ के बाद तक़रीबन 8:30 PM बजे से जामा मस्जिद सहारनपुर कलां के प्रबंधक मौलाना मुहम्मद फरीद साहब मज़ाहिरी नायब सदर जमियत उलेमा-ए-हिंद सहारनपुर की अध्यक्षता मे एक दीनी जलसे का आयोजन किया जा रहा है जिसकी निज़ामत जामिआ मज़ाहिर उलूम (जदीद) सहारनपुर के उसताज़ मुफ्ती मसरूर साहब मज़ाहिरी फरमाएगें।इस्लामी महीने शअबान की पंद्रहवी रात को शब-ए-बराअत कहा जाता है। इस्लाम धर्म के अनुसार इस रात अल्लाह तआला अपने बंदो के पापों और गुनाहो को माफ करके उनको पापों से रिहाई देते हैं इसलिए इसे शब-ए-बराअत कहा जाता है। जैसा कि आखरी नबी और पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैयहि व सल्लम) ने फरमाया कि इस रात अल्लाह तआला अरब के क़बीले बनू कल्ब की बकरियों के बालों से भी ज़्यादा तअदाद मे अपने बंदो की मगफिरत फरमाते हैं। बनू कल्ब अरब के एक क़बीले का नाम था जिनके पास पूरे अरब मे सबसे ज़्यादा बकरियाँ हुआ करती थी और मतलब यह है कि बेशुमार बंदो की मगफिरत की जाती है।इस रात के अगले दिन रोज़ा रखना बेहतर है, ज़रूरी नही है। मगर जो रख सकते हो उनको रखना चाहिए लेकिन अगर न रखे तो गुनाह भी नही होगा। कुछ लोग जो इस्लाम की तालीमात से अज्ञानी और ना-वाक़िफ होते हैं वह इस रात को आवश्यकता से ज़्यादा अहमियत देते हैं और इसको एक तहवार के रूप मे मनाते हैं, नए कपड़े सिलवाते हैं, हलवे बाँटते हैं आदि आदि, यह सब काम इस्लामी तालीमात के विपरीत और विरुद्ध हैं इनसे बचना चाहिए।
जिस तरह इस्लाम मे इसकी फज़ीलत आई है जैसा कि अभी बतलाया गया कि इस रात पापों से मुक्ति मिलती हैं। इसी प्रकार इस्लाम ने इसकी एक हद भी बतलाई है कि इस रात न तो कोई खास इबादत का तरीक़ा है और न मस्जिदों मे जमा होकर इबादत करना कहीं से साबित है। बल्कि लोगों को चाहिए कि अपने घर पर रह कर ही इबादत करें और मुल्क व क़ौम की तरक़्क़ी व अमन व शांति की दुआएं मांगे। खास तौर पर जो लोग इस दिन कब्रिस्तान जाने को सुन्नत और ज़रूरी समझते हैं और इस्लाम विरुद्ध गतिविधियां करते हैं जैसे : कब्रिस्तान मे ज़रूरत से ज़्यादा लाईटें जलाना, मोमबत्तियां जलाना, वहाँ पर खाने आदि चीज़ों की सबीले लगाना और टोलियां बनाकर निकलना और उसे एक मेले और तहवार का रूप देना, यह सब बातें इस्लामी तालीमात के सरासर खिलाफ है। और हमे चाहिए कि इस रात सच्चे मन और भाव से अल्लाह तआला से माफी भी मांगे और उन गलतियों को भविष्य मे न करने का पक्का संकल्प भी करें। इसी के साथ-साथ अपने मुल्क भारत की तरक़्क़ी और अमन व शांति के लिए भी दुआ करे और कोई ऐसा काम न करें जो शर्मिन्दगी का सबब बने।इस मुबारक मौक़े पर मुखतलिफ जगहों से बड़े-बड़े इस्लामी धर्मगुरू उलेमा-ए-किराम व फुक़हा-ए-इज़ाम तशरीफ लाएंगे। जिनमे मुख्य तौर पर जामिआ फैज़-उल-उलूम मिर्ज़ापुर पोल से मौलाना अब्दुल खालिक़ साहब, मुफ्ती वाजिद साहब, क़ारी फैज़ान साहब, जामिआ मज़ाहिर उलूम जदीद सहारनपुर से मुफ्ती अनीस साहब, मुफ्ती उस्मान बिजनौरी साहब, जामिआ मज़ाहिर अलूम वक़्फ से मौलाना मुहम्मद सलमान साहब, इसी तरह मुफ्ती क़सीम साहब, मुफ्ती लियाक़त साहब और मौलाना अब्दुल अलीम साहब आदि के अलावा दीगर मुअज़्ज़ज़ हज़रात व गणमान्य लोग मौजूद रहेंगे।
0 टिप्पणियाँ