Ticker

6/recent/ticker-posts

शिवधाम में श्रीराम कथा का तीसरा दिन: स्वामी रामदेव ने कहा–थोड़ा समय मिले तो भी प्रभु के ध्यान में अवश्य लगाएं

शिवधाम में श्रीराम कथा का तीसरा दिन: स्वामी रामदेव ने कहा–थोड़ा समय मिले तो भी प्रभु के ध्यान में अवश्य लगाएं

रिपोर्ट अमान उल्ला खान

सहारनपुर-शिवधाम कॉलोनी में चल रही श्रीराम कथा के तीसरे दिन मंगलवार को कथा स्थल पर भक्ति और श्रद्धा का अनोखा माहौल रहा।

विशिष्ट अतिथि के रूप में पहुंचे योग गुरु स्वामी रामदेव महाराज ने श्रद्धालुओं को भक्ति का संदेश देते हुए कहा कि “आप सभी को प्रभु की भक्ति और ध्यान अवश्य करना चाहिए। यदि अधिक समय नहीं दे सकते तो थोड़ा समय ही सही, परंतु भगवान की पूजा-अर्चना और ध्यान में समय अवश्य दें।” स्वामी रामदेव ने कहा कि “आप भले ही थोड़े समय के लिए प्रभु का ध्यान करें, परंतु पूर्ण समर्पण भाव से करें। अमृत नाम है हरिनाम जगत में, फिर विषय-विष पीना क्या, हरिनाम नहीं तो जीना क्या।” उन्होंने कहा कि भगवान की कथा और उनकी महिमा सुनना हर मनुष्य के लिए आवश्यक है, क्योंकि इससे प्रभु में भक्ति और विश्वास दृढ़ होते हैं। योग गुरु ने आगे कहा कि “प्रभु श्रीराम की महिमा अपरंपार है। इस समस्त जगत में केवल प्रभु ही स्मरणीय हैं, क्योंकि वही हर कठिन क्षण में हमारी रक्षा करते हैं। जब एक बेटी का विवाह होता है, तो उसके लिए उसका पति ही सर्वस्व हो जाता है और वह अपना जीवन उसकी सेवा में समर्पित कर देती है। उसी प्रकार हम सबको भी प्रभु की भक्ति में अपना जीवन अर्पित करना चाहिए।” उन्होंने कहा कि प्रभु श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में मर्यादाओं का पालन किया। उनके जीवन से हर व्यक्ति को अनुशासन, सत्य और कर्तव्यनिष्ठा की सीख लेनी चाहिए। स्वामी रामदेव ने कहा कि “जिस व्यक्ति ने प्रभु श्रीराम का आश्रय ले लिया, उसकी रक्षा स्वयं महादेव और बालाजी सरकार करते हैं।” इसके बाद परम पूजनीय कथाव्यास आचार्य महामंडलेश्वर श्री श्री 1008 डॉ. स्वामी कैलाशानंद गिरि महाराज ने कथा को आगे बढ़ाते हुए अयोध्या आगमन, कैकई के वरदान, वनगमन, चित्रकूट आगमन और महाराज दशरथ के निधन जैसे प्रसंगों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। उन्होंने कहा कि “श्रीराम कथा का आमंत्रण किसी को नहीं दिया जाता, कथा का आमंत्रण तो पवन देव स्वयं सबको देते हैं।”आचार्य कैलाशानंद गिरि महाराज ने भक्ति मार्ग का महत्व बताते हुए कहा कि “भक्ति मार्ग में न कर्मकांड की आवश्यकता होती है और न ही मंत्रों की। न तिथि देखी जाती है और न वार। जहां राम का नाम, वहीं अयोध्या।” उन्होंने कहा कि जब भगवान राम वन गए तो वन ही अयोध्या हो गया। कथाव्यास ने आगे कहा कि जब भगवान राम वन में पहुंचे, तब माता सती उनकी परीक्षा लेने आईं। माता सती को देखकर प्रभु राम ने उन्हें प्रणाम किया। यह देखकर माता सती कैलाश लौट गईं और भगवान शिव समाधि में चले गए। 87 हजार संवत तक समाधि में रहने के बाद जब शिव जागे, तो उनके मुख से ‘राम-राम’ नाम निकला। कुछ समय बाद सभी देवी-देवता हरिद्वार की ओर जा रहे थे। माता सती ने जब पूछा कि वे वहां क्यों जा रहे हैं, तो भगवान शिव ने बताया कि प्रजापति दक्ष यज्ञ कर रहे हैं। माता सती जिद कर यज्ञ में गईं, लेकिन वहां भगवान शिव के लिए कोई स्थान न देखकर दुखी हो गईं।कैलाशानंद गिरि महाराज ने कहा कि “प्रभु राम जी की महिमा अपरंपार है। इस जगत में केवल प्रभु ही स्मरणीय हैं, क्योंकि वही हर पग पर हमारी रक्षा करते हैं। प्रभु श्रीराम ने अपना जीवन मर्यादित रहकर जिया और यही अनुशासन हर मानव के जीवन का आदर्श होना चाहिए।” कथा के दौरान वातावरण हरिनाम से गूंज उठा। श्रद्धालु भावविभोर होकर कथा का रसपान करते रहे।
कथा में उपस्थित स्वामी रामदेव ने कहा कि सहारनपुर से उनका तीन दशक पुराना आत्मीय संबंध है। उन्होंने बताया कि “जब मुझे बहुत कम लोग जानते थे, तब भी मैं सहारनपुर आता था। माहेश्वरी धर्मशाला में मैंने तीन दशक पहले छोटा सा योग कार्यक्रम किया था। सहारनपुर ने हमेशा मुझे अपनापन दिया है।” उन्होंने कहा कि भौतिक संपत्ति यदि आंतरिक संपत्ति के बिना हो, तो वह विपत्ति बन जाती है। “हमें धर्म का दर्शन करना चाहिए, जिससे आंतरिक संपत्ति बढ़ती है। हरिनाम जगत में अमृत है, फिर इस अमृत को छोड़कर विष का पान क्यों करें।”इस अवसर पर अक्षय जैन, राजीव गुप्ता, फतह सिंह बाजवा, राहुल भाटिया, अंकित जैन सहित अनेक भक्त मौजूद रहे।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

शिवधाम में श्रीराम कथा का तीसरा दिन: स्वामी रामदेव ने कहा–थोड़ा समय मिले तो भी प्रभु के ध्यान में अवश्य लगाएं